International Research journal of Management Science and Technology

  ISSN 2250 - 1959 (online) ISSN 2348 - 9367 (Print) New DOI : 10.32804/IRJMST

Impact Factor* - 6.2311


**Need Help in Content editing, Data Analysis.

Research Gateway

Adv For Editing Content

   No of Download : 141    Submit Your Rating     Cite This   Download        Certificate

श्रीलाल शुक्ल के उपन्यासों में अभिव्यक्त ग्रामीणचेतना।

    1 Author(s):  DR. BINCYMOL C G

Vol -  8, Issue- 7 ,         Page(s) : 243 - 246  (2017 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMST

Abstract

श्रीलाल शुक्ल आधुनिक हिन्दी साहित्य के एक श्रेष्ठ व्यंग्य लेखक है। वे प्रेमचन्द की परंपरा में आनेवाले रचनाकार है। उनके उपन्यासों में भारतीय जनजीवन का यथार्थ बहुत सूक्ष्मता और व्यापकता के साथ प्रकट हुआ है। वे आम आदमी के पक्षधर बनकर शोषितों के लिए लिखते थे। वे विशेष रूप में स्वातंत्र्योत्तर भारतीय सामाजिक जीवन के व्याख्याकार रहे हैं। गरीबों से भरे हुए भारतीय जीवन में आमुल-चूल परिवर्तन लाने के लिए सामाजिक चेतना में भी एक क्रांति हो जाने की आवश्यकता है। वे सामाजिक असंगतियों पर करारा व्यंग्य करते हैं। वे राजनैतिक भ्रष्टाचार तथा शोषण पर कटू आलोचना करते हैं।

1. षैलजा जायसवाल, राही मासूम रज़ा के उपन्यासों में समकालीन संदभÇ, पृ. 92
2. डॉ. रामदरश Êमश्र, Êहन्दी उपन्यास एक अन्तयाÇत्रा, पृ. 40
3. श्रीलाल शुक्ल, रागदरबारी, पृ. 259
4. श्रीलाल शुक्ल, रागदरबारी, पृ. 59
5. वही, पृ. 155
6. श्रीलाल शुक्ल, सूनी घाटी का सूरज, पृ. 28
7. श्रीलाल शुक्ल, रागदरबारी, पृ. 32
8. वही, पृ. 134
9. वही, पृ. 127

*Contents are provided by Authors of articles. Please contact us if you having any query.






Bank Details