International Research journal of Management Science and Technology
ISSN 2250 - 1959 (online) ISSN 2348 - 9367 (Print) New DOI : 10.32804/IRJMST
**Need Help in Content editing, Data Analysis.
Adv For Editing Content
भावी शिक्षकों एवं भावी शारीरिक शिक्षकों का योग शिक्षा के प्रति अभिमत
1 Author(s): DR. RACHNA RATHORE
Vol - 7, Issue- 6 , Page(s) : 171 - 176 (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMST
डाॅ. राधाकृष्णन के अनुसार ‘‘योग वह प्राचीन पथ है जो व्यक्ति को अंधेरे में प्रकाश की ओर लाता है।’’ श्रीमद्भगवत्गीता के अनुसार ‘‘जीवात्मा और परमात्मा के एकीकरण का नाम ही योग है।’’ अतः स्पष्ट होता है कि ‘योग’ आत्मा परमात्मा के एकीकरण को कहते है। ‘योग’ वह शक्ति है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने आपकों शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, नैतिक, आध्यात्मिक दृष्टि से इस प्रकार सबल एवं पुष्ट बनाता है कि वह स्वयं ही परमात्मा स्वरूप हो जाता है। यदि ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाये तो ज्ञात होगा कि योग एक प्राचीनतम शास्त्र है जिसकी पुष्टि सिन्धु घाटी की खुदाई में प्राप्त अवशेषों से होती है।