International Research journal of Management Science and Technology

  ISSN 2250 - 1959 (online) ISSN 2348 - 9367 (Print) New DOI : 10.32804/IRJMST

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सामाजिक न्याय- महात्मा गांधी एंव भीमराव अम्बेडकर तुलनात्मक विवेचन

    1 Author(s):  DR. ANURADHA MISHRA

Vol -  7, Issue- 6 ,         Page(s) : 140 - 143  (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMST

Abstract

मानव जीवन व सामाजिक व्यवस्था की आधारषिला सामाजिक न्याय है। यह प्रकृति का वह पक्ष है जिसके आधार पर मनुष्य को नैतिक व सदाचारी माना जाता हैै। प्राचीन काल से सामाजिक व आर्थिक न्याय का विचार समाजवादी विचारकों व राजनीतिज्ञों के चिंतन का विषय रहा है। आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व अरस्तु ने सामाजिक न्याय को समानता पर आधारित माना था। सामाजिक न्याय की अवधाारणा मूल रुप से इस बात पर आधारित है कि समाज मे रहने वाले सभी व्यक्ति समान है और धर्म,जाति,वंष,रंग आदि के आधार पर उन्हे असमान नहींे माना जाना चाहिए प्रत्येक व्यक्ति को उसके व्यक्तित्व के विकास के लिए पूर्ण सुविधाऐं उपलब्द कराना व सामाजिक आवष्यकताओं की पूर्ति करना ही ‘‘सामाजिक न्याय‘‘ है। सामाजिक व्यवस्था को इस प्रकार प्रतिष्ठित किया जाए कि प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यता व आवष्यकतानुसार विकास के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराए जा सके।

  1. हरिजन 14.11.1939
  2. उपरोक्त-20.04.1940
  3. गंाधी विचार और सामाजिक पुर्नरचना
  4. डेविड मिलर ‘‘द ब्लेकवल इनसाइक्लोपीडिया आफ पाॅलिटिकल थाट’’, न्यूयार्क,1987 पृ0 26
  5. के0 एस0 भारती फाउन्डेषन आॅफ अम्बेडकर थाॅट’’, नई दिल्ली,1950 पृ05
  6. कीर, धनंजय ‘‘डा0 अम्बेडकरः लाइफ एण्ड मिषन’’ 1981 पृ0229
  7. अय्यर, वी0के0कृष्ण ‘‘डा0 अम्बेडकर एण्ड द दलित फ्युचर’’,दिल्ली1990 पृ05
  8. महार पत्रिका से साभार 
  9. ओम प्रकाष गाबा,राजनीति सिद्धांत की रूपोजा,मयूर पब्लिकेषन,दिल्ली 1991 पृ0230-231
  10. भगवान दास,‘The Spoke Ambedkar’’ भाग 4, बम्बई 1988 पृ0107-108

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