International Research journal of Management Science and Technology

  ISSN 2250 - 1959 (online) ISSN 2348 - 9367 (Print) New DOI : 10.32804/IRJMST

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वैदिक साहित्य में मानवीय मूल्यःवर्तमान संर्दभमें

    1 Author(s):  DR. KANCHANMALA PANDIT

Vol -  5, Issue- 1 ,         Page(s) : 450 - 457  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMST

Abstract

समाज जीवन में मूल्यों की महत्ता असंदिग्ध है। किसी भी समाज में प्रचलित मानवीय मूल्य उससंस्कृति की उच्चता के परिचायक होते हैं। प्राचीनआर्ष चिन्तन में आविष्कृत मूल्यों की वर्तमान संदर्भ में परीक्षण का प्रयास न केवल भारतीय साहित्य की उच्चताका बोध करना है बल्कि जीवन्त समाज की अक्षुण्णसांस्कृतिक परम्परा का अन्वेषण है। प्रस्तुत शोध आलेखइसी आमुषिमक चिंतन का प्रतिफलन है।

1ऋग्वेद - 10/3/6 
2ऋग्वेद - 1/124/3 
3कठोपनिषद् - 6/12
4. योमान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्मे दहमः।। अथर्ववेद - 3/27/1-6
5. तैत्तिरीय आरण्यक - 9/1 6.
6 ऋग्वेद - 1/1/9 
7. ऋग्वेद-10/191/2, अथर्ववेद -6/64/1 
8. ईशावास्योपनिषद्-प्रथम मंत्रा
9. इन्द्रासोमा समघशंसमभ्ययघं तपुर्ययस्तु चरुरग्नि वाँ इव। ब्रह्मद्विषे क्रव्यादे घोरचक्षसे द्वेषो धत्तमनवायं किमीदने।। ऋग्वेद -
7/104/2
10. ऋग्वेद - 6/75/14 
11. यजुर्वेद - 3/30 
12. यजुर्वेद - 12/110
13.यजुर्वेद - 2/28 
14. ईशावास्योपनिषद् - द्वितीय मंत्रा 
15. अथर्ववेद - 1/31/4
16.यजुर्वेद - 19/11
17. अथर्ववेद - 3/30/2-3 
18. अथर्ववेद - 3/30/1
19. यजुर्वेद - 24/1
20. ऋग्वेद - 1/91/8
21. अथर्ववेद - 7/115/2 
22. अथर्ववेद - 7/115/4
23. अथर्ववेद - 7/115/1
 24. यजुर्वेद - 33/78
25. ऋग्वेद - 7/94/7 
26. जिह्वाया अग्रे मधु में जिह्वामूले मूधुलकम्। ममेदह कृतावसो मम चित्तमुपयसि। मध्ुमन्मे निक्रमणं मध्ुमन्मे परायणम्। वाचा    
वदामि मध्ुमत् भूयासं मध्ुसन्दृशम्।। अथर्ववेद - 1/34/2-3
27. अथर्ववेद - 3/13/5
28. ऋग्वेद - 10/164/3

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