International Research journal of Management Science and Technology

  ISSN 2250 - 1959 (online) ISSN 2348 - 9367 (Print) New DOI : 10.32804/IRJMST

Impact Factor* - 6.2311


**Need Help in Content editing, Data Analysis.

Research Gateway

Adv For Editing Content

   No of Download : 735    Submit Your Rating     Cite This   Download        Certificate

आाधुनिक युग में प्रेमचन्द के साहित्य की प्रासंगिकता

    1 Author(s):  DR. KULDEEP SINGH

Vol -  6, Issue- 1 ,         Page(s) : 185 - 190  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMST

Abstract

कथा सम्राट प्रेमचंद का नाम भारत में ही नहीं, विश्व में माननीय है। प्रेमचंद भारतीय जनमानस के चितेरे साहित्यकार है। पहले धनपतराय, नवाबराय और बाद मंे प्रेमचंद ने सन् 1880 के परतंत्र भारत में जन्म लिया था। होश सँभालते ही गुलामी, दासता और अत्याचार सहते हुए भारतीय समाज को देखा और अनुभव किया, जिसके कारण तत्कालीन समस्याओं को अपनी कहानियों तथा उपन्यासों में अभिव्यक्त किया। यही उनके प्रासंगिक होने का प्रबल कारण था, क्योंकि कोई भी रचनाकार मानवीय अनुभूति के गहरे श्रोतों और प्रश्नों से जूझे बिना इतने समय तक जीवंत प्रसंग के रूप में बना नहीं रह सकता। प्रेमचंद ने बीसवीं सदी की विकास गति को महसूस कर कहा था कि ऐसे काल में लोग या तो आशिकी करते हैं या वैराग्य में मन रमाते हैं।

1. सेवा-सदन, भारतीय गं्रथ निकेतन, दिल्ली, संस्करण, 1987ए पृ0 से उद्धृत।
2. वही पृ0 8
3. मानसरोवर, भाग 3, हंस प्रकाशन, संस्कारण 1979, पृ0 93
4. वही, पृ0 29
5. वही, पृ0 129
6. वही, पृ0 141
7. वही, पृ0 231
8. वही, भाग -2, पृ0 204
9. वही, भाग-2, पृ0 210
10. वही, भाग-2, पृ0 315
11. सेवासदन, पृ0 6

*Contents are provided by Authors of articles. Please contact us if you having any query.






Bank Details