राजस्थान में जल संरक्षण: सरकार एवं गैर सरकारी संगठनों की भूमिका
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Author(s):
DR. RAJYASHREE TIWARI
Vol - 8, Issue- 11 ,
Page(s) : 331 - 336
(2017 )
DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMST
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Abstract
जल सृष्टि का मूलाधार है। जल एक ऐसा प्राकृतिक संसाधन है जिस पर केवल मानव ही नहीं अपितु वनस्पति एवं सम्पूर्ण जीव जगत निर्भर मानव का अस्त्त्वि भी जल पर ही निर्भर है। मानव की अन्य आवयष्कताएॅ जल की तुलना में तुच्छ है। मानव की यह धारणा कि जल प्रकृति की देन है तथा इसका स्वच्छन्दता से उपयोग किया जा सकता है, जो सही नहीं है। जल सीमित है। विष्व में उपलब्ध जल का मात्र 2ण्7ः ही जल मानव उपयोगी है, षेष जल समुद्र में है। समुद्र के अतिरिक्त उपलब्ध जल में से मात्र 0ण्35ः झीलों एवं जलग्रहण क्षेत्रों में है तथा मात्र 0ण्01ः नदीं नालों में है। भू गर्भ में 4ः है तथा षेष 77ः जल पृथ्वी के ध्रुवों पर बर्फ के रूप में विद्यमान है। सभ्यता एवं संस्कृति के विकास के साथ-साथ जीवन दायिनी इन जल बूॅदों को सुरक्षित एवं संरक्षित करने के तौर-तरीके भी बदलते रहे। विष्व में जल का संकट है किन्तु भारत की स्थिति अधिक गंम्भीर है, क्योंकि यहाॅ दुनियाॅ की 16ः आबादी निवास करती है जबकि पानी केवल 4ः उपलब्ध है।
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