International Research journal of Management Science and Technology

  ISSN 2250 - 1959 (online) ISSN 2348 - 9367 (Print) New DOI : 10.32804/IRJMST

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जिला रीवा में समन्वित बाल विकास कार्यक्रम का कुपोशण पर प्रभाव

    1 Author(s):  DR. NEHA GUPTA

Vol -  8, Issue- 9 ,         Page(s) : 199 - 203  (2017 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMST

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Abstract

समन्वित बाल विकास योजना महिला एवं बाल विकास विभाग की सबसे पुरानी और महत्वपूर्ण योजना है, जिसका क्रियान्वयन जिले में वर्ष 1982 से किया जा रहा है। जबकि महिला बाल विकास विभाग की स्थापना जिले में वर्ष 1988 में हुआ है। इस योजना का क्रियान्वयन आंगनवाड़ी केन्द्रांे के माध्यम से किया जाता है तथा इसके अन्तर्गत छः प्रकार की सेवायें हितग्राहियों (महिलाओं और बच्चों) को प्रदान की जाती है। वे छः सेवायें हैं- पूरक पोषण आहार, टीकाकरण, स्वास्थ्य जांच, संदर्भ सेवायें, 3 से 6 वर्ष की आयु वाले शिशुओं को स्कूल पूर्व अनौपचारिक शिक्षा, महिलाओं के लिए पोषण तथा स्वास्थ्य शिक्षा शामिल है। इन सेवाओं में से टीकाकरण सेवा व स्वास्थ्य जांच सेवा का कार्य स्वास्थ्य विभाग के सहयोग से आंगनवाड़ी केन्द्रों में किया जाता है। अनौपचारिक शिक्षा, पोषाहार एवं स्वास्थ्य शिक्षा व पूरक पोषण आहार का वितरण केन्द्रांे का संचालन करने वाली आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका द्वारा पर्यवेक्षक के सहयोग से हितग्राहियों को किया जाता है। जिले में समेकित बाल विकास कार्यक्रम के प्रारंभ में 261 आंगनवाड़ी केन्द्र संचालित थे। 1989 में इनकी संख्या बढ़कर 402 तथा 1998 में 998 हो गयी। वर्ष 2008 में बढ़कर 2154 व 2018 में बढ़कर 3434 हो गयी। जिले में आंगनवाड़ी केन्द्रों की संख्या में निरंतर बृद्धि की जा रही है ताकि अधिक से अधिक हितग्राहियों को सेवाओं का लाभ प्रदान किया जा सके एवं कुपोषण के कलंक को समाप्त किया जा सके परंतु जिला सहित सम्भाग में यह प्रयास सार्थक साबित नहीं हो पा रहा है।


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