महाभारतीय नारी पात्रों की अतीत और वर्तमान में समीक्षा
1
Author(s):
AKSHAY RAJ MEENA
Vol - 9, Issue- 3 ,
Page(s) : 370 - 374
(2018 )
DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMST
Get Index Page
Abstract
साहित्य और समाज परस्पर सम्बद्ध है। सत्साहित्य समाज को प्रेरित करता हैं, वहीं असत्साहित्य समाज में असाधु संस्कारों का बीजभूत हैं। दूसरी ओर समाज का साहित्य पर प्रगाढ़ प्रभाव पड़ता हैं। साहित्य में वर्णित किसी वर्ग-विशेष की स्थिति तत्कालीन समाज में उसकी स्थिति को ही प्रतिफलित करती हैं। रामायण तथा महाभारत सर्वाधिक पूजनीय धार्मिक ग्रन्थ होने पर भी साहित्य को प्रतिबिम्बित करने में पूर्णतया सक्षम हैं रामायण आदर्श परिवार को माध्यम बनाकर उच्च आदर्शों, मानवीय मूल्यों, नैतिकता आदि समस्त अनुकरणीय भावों को मूर्तरूप में प्रतिफलित करने वाला काव्य हैं वहीं महाभारत एक सम्पूर्ण वंश तथा तत्कालीन समाज की अवस्था को सफलता से रूपायित करता हैं। नारी समाज का एक महत्त्वपूर्ण अंग हैं। नारी का सबसे प्रमुख स्थान होता हैं उसका घर जहाँ वह पुत्री, बहिन, पत्नी, माता, वधू आदि अनेक रूपों में रहती हैं। गृहस्थ आश्रम नारी-पुरुष के मिलन का ही नाम हैं। परन्तु नारी का स्थान विगत और विद्यमान में देखा जाये तो क्या था? प्रस्तुत शोधपत्र में महाभारत के नारी पात्रों का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अध्ययन करने का प्रयास किया गया हैं।
|