योगकुण्डल्य उपनिषद् में हठयोग-साधना
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Author(s):
DR. PUNIT KUMAR MISHRA
Vol - 8, Issue- 1 ,
Page(s) : 208 - 214
(2017 )
DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMST
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Abstract
योगकुण्डल्य उपनिषद् कृष्ण यजुर्वेदीय परम्परा से सम्बद्ध है जिसमें कुल तीन अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में आसन, प्राणायाम, शक्तिचालिनी मुद्रा एवं तीन प्रकार के बंधों का वर्णन है। द्वितीय अध्याय में खेचरी मुद्रा की विवेचना करने के साथ-साथ तृतीय अध्याय का शुभारम्भ खेचरी मिलन (खेचरी सिद्धि) के मन्त्र से हुआ है। हठयोग साधना में खेचरी मुद्रा का विशेष महत्त्व है।
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